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yaadein

kisse kahen
kisse kahen
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जब यादों का एल्बम खोलूँ तो कुछ लोग बहुत याद आते हैं
मैं अपना बचपन सोचूं तो कुछ लोग बहुत याद आते हैं
अब जाने किस नगरी में जाकर सोये हैं बरसों से
मैं रात देर तक जागूँ तो कुछ लोग बहुत याद आते हैं

कुछ बातें थी फूलों जैसी कुछ खुशबू जो अब भी याद है
मैं इस चमन में तहलूँ तो कुछ लोग बहुत याद आते हैं
जब शाम ढले पंछी लौट कर घर आते हैं और शाम की लाली पड़ती है
मैं अपनी खिड़की पर बैठूं तो कुछ लोग बहुत याद आते हैं

मेरे हाथों की इन उलटी सीढ़ी रेखाओं को कई लोग चूमा करते
अब जब मैं हथेली को देखूं तो कुछ लोग बहुत याद याद आते हैं
वह पल भर की नाराज़गी और भीर मान जाना पल भर में
और जब हम खुद ही रूठ जाएँ तो कुछ लोग बहुत याद आते हैं.

मैं शायद २ साल की थी जब मेरे नाना नहीं रहे. अपने परिवार में पापा और मम्मी सबसे बड़े थे और मैं दोनों तरफ से पहला आगमन.मेरी दादी (माँ),नाना,नानी,
मामा,मौसी सभी बहुत खुश हुए जब मेरा जन्म हुआ.माँ को जब खबर मिली तोह उसने बतासे बाटे.मम्मी और नानी बताते हैं की नाना मुझे बहुत प्यार करते थे
और प्यार से “chhunaa” बुलाते थे और उनके बाद किसे ने भी मुझे इस नाम से नहीं बुलाया.अब भी सभी मुझे मेरे अपने नाम से पुकारते हैं पर लगता है की अगर
थोड़ी बड़ी होती तो शायद नाना की आवाज़ याद रहती. माँ की लाडली, पूँछ थी मैं.जहाँ माँ वहां मैं, और माँ ने भी मेरे लिए बहुत कष्ट झेला.मुझे अपने साथ
मंदिर,सब्जी लेने, बस स्टॉप से घर लाना,प्रिकक्ली heat से घायल मेरी पीठ खुजाना.मेरे सब काम माँ करती थी. मम्मी teacher थी इसलिए वो ज्यादा समय
नहीं दे पाती थी.जब माँ कनखल जाती तो मैं ज़रूर साथ मैं होती. मुझे याद है की माँ के साथ मैंने भी २ कुम्भ नहाये हैं.कैसे बस में धक्के खाकर माँ मुझे ले गयी थी
और फिर भी उसे गुस्सा नहीं आता था. टीवी और fridge खरीदने के लिए माँ ने भी सबसे पहले अपने जमा किये पैसे निकाले थे. पहला बच्चा होने के यही फायेदे
थे,सबका खूब लाड प्यार मिला,जो मेरा छोटा भाई हमेशा कहता था की माँ और पापा दीदी के साथ भेदभाव करते हैं.ऐसे हमारी सोच थी .अब इन सबके जाने के बाद
उनकी छोटी छोटी बातें याद आती हैं और लगता है की अगर समय को रोक पाती तो वहीँ रोक लेती. अब अपने बच्चे में और अपने भाई के बच्चों में मैं सबको खोजती
हूँ, और कहीं कहीं अपने में ,भाई में, अपने बच्चों में मुझे माँ और पापा की छवि दिखाई पड़ती है. भाई की बेटी तो बिलकुल माँ का अवतार है, और जब कभी भाई
मज़ाक में कहता है की तू मेरी दादी है,तो उसका जवाब होता है “नहीं मैं बुआ की माँ हूँ” ,सिर्फ ४ साल की है और तेवर बिलकुल माँ जैसे.
समय कोतो नहीं रोक सकती पर कभी लगता है की इतने प्यार करने वालों की याद कैसे जीवित रख पायूं. ख़ामोशी के पलों मैं आँख बंद करूँ तो तो एक फिल्म की तरह सब दीखता है. लेकिन मैं भगवन को धन्यवाद देती हूँ की मुझे इतना प्यार करने वाला परिवार दिया और मैं आगे अपने बच्चों को उनके संस्कार दे पाऊँ.

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